सिलिकोसिस पीड़ितों के हक में उच्चतम न्यायालय की आवाज
सेहतराग टीम
उच्चतम न्यायालय ने प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के दुष्प्रभावों के कारण होने वाली सिलिकोसिस बीमारी के पीड़ितों के लिए मुआवजा तय करने के मामले पर सभी राज्यों से जवाब दायर करने को कहा है। सिलिकोसिस सिलिका धूल के कारण होने वाली फेफड़ों की बीमारी है।
कई राज्यों में कारखानों में काम करने के दौरान सिलिकोसिस से पीड़ित हुए लोगों के पुनर्वास संबंधी मामले की सुनवाई कर रहे उच्चतम न्यायालय को पिछले दिनों बताया गया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक राज्य में काम कर रही प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों का निरीक्षण किया और 2017 में अपनी रिपोर्ट दी।
न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी (हाल में सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘रिपोर्ट में खराब तस्वीर सामने आई। केवल पर्यावरण संबंधी कानून की ही बड़े स्तर पर अवहेलना नहीं हुई है, बल्कि इसके कारण इन इलाकों में रहने वाले लोगों को भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुईं। इनके कारण कई बीमारियां फैलीं और कई लोगों की मौत भी हुई।’
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने न्यायालय से कहा कि सीपीसीबी को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना चाहिए कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग बंद हो जाएं।
सीपीसीबी की ओर से पेश वकील ने कहा कि गुजरात में प्रदूषण फैलाने वाली इस तरह की कई इकाइयों को बंद करने के आदेश पहले ही दिए जा चुके हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पीठ को भरोसा दिलाया कि राज्य में अब भी काम कर रहे प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी। पीठ ने कहा, ‘इस मामले में सभी राज्यों को कारण बताओ नोटिस जारी किए जाएं। उन्हें अपने जवाब में यह बताना होगा कि अदालत सिलिकोसिस के उन पीड़ितों के लिए मुआवजा तय क्यों न करे जो उन स्थानों पर रह रहे हैं जहां उद्योग हैं।’ पीठ ने राज्यों को छह सप्ताह में जवाब दायर करने को कहा है।
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